Tuesday 17 September 2019

WHY I WRITE - आखिर मैं क्यों लिखता हूँ ?

आखिर मुझे स्पष्ट करना ही पड़ेगा कि मेरे इस ब्लॉग पर आने की मुख्य वजह क्या है ?
आए दिन बढ़ते अन्याय और अत्याचार ऊपर से उखड़ती न्याय की जड़ेदम तोड़ती मनुष्यतानष्ट होती प्रकृति। इन्सानों के दिये कष्टों को सहती जीव जातियाँअंधकार में जाता भविष्य। यही कुछ असाधारण वजहें है, जिन्होने मेरे अंदर के लेखक को जगा दिया है और मुझे भी। चलिये जमीनी स्तर से शुरुवात करते है, झूठ को बेनकाब करते है।
कृपया ध्यान पूर्वक पढे...
मैं ग्रामीण परिवेश से हूँ जहां अशिक्षित लोग शिक्षित लोगों पर राज करते हैमानसिक और शारीरिक शोषण के रूप मेंसाथ ही साथ संविधान और मानवाधिकारों का उल्लंघन उनके लिए आम बात है। क्यों कि उनके अपने अलग कायदे कानून है जो देश के कायदे कानून से मेल नही खाते। पर अक्सर यही लोग देश के लिए जान देने को उतावले नजर आते है। अपने बच्चों को फौज में ज़्यादातर ये ग्रामीण परिवेश के लोग ही भेजते है। परंतु फिर भी देश की नींव कहे जाने वाले संविधान और देश का आधार कहे जाने वाले कानून को ये लोग लातों और अपनी लाठियों के दम पर पैरों तले कुचल डालते है। उनकी इन्ही मूर्खताओं की वजह से मैंने उन्हें अशिक्षित कहा है। दूसरी बात - अक्सर लोगों के पास समय की अधिकता होने के कारण उनका खाली समय दूसरों की बुराइयाँ खोजने मेंराजनीति करने मेंजुआ खेलने मेंषणयंत्र रचने में बीतता है। कुछ ऐसा हो कि उन्हें खाली समय बिताने के तरीके मिल जाये तो खोजबीन करने पर उन्हें कुछ ऐसे सुराख मिल ही जाते है जो आसानी से उनके खाली समय को बेहद उम्दा तरीके से व्यतीत करने में पूर्ण मदद करेंगे। ज्यादातर उनके सुराख अत्यंत घातक सिद्ध होते है। ये छोटी छोटी बातों के सुराख उन्हें मौत के खेल तक ले आते है। पर फिक्र किस बात की उनका समय तो कट ही रहा है बड़े उम्दें तरीके से। चलिए मुद्दे पर आते है। अक्सर आये दिन मैं अपने ही परिवेश में लोगों की होती निर्मम हत्याएँ देखता हूँ। पर मैं झूठ नहीं कहूँगा, मैंने यहाँ रेप जैसी घटनाएं शायद न के बराबर सुनी है। उसकी वजह है - यहाँ के लोग इज्जतमान-सम्मान को अपनी जान से भी ज्यादा महत्व देते है। और अगर किसी ने गल्ती से भी रेप जैसा कुकर्म किया तो कानून तो उसे बाद में सजा देगा पर यहां के लोग उसे पहले ही कच्चा चबा जाएंगे। शायद इसी वजह से यहां रेप नहीं होते।परंतु झगड़ों के बिना तो लोगों का एक वक़्त का खाना भी हजम नहीं होता। राह चलते झगड़े हो जाते है पर ये झगड़े इतने सस्ते भी नही होते। लाठियाँबंदूके यहाँ तक कि महिलाएं भी ईंटो और पत्थरों की वर्षा करने लगती है। नुमाइश सी लग जाती है पर मैं सिरफिरा अपने में ही मस्त रहता हूँ। दरअसल उनका मूर्खों की तरह इस कदर अपनो से ही झगड़ना मुझे अत्यंत घटिया और अज्ञानता से भरे व्यक्तित्व का अनुभव कराता है। मैं सोच में पड़ जाता हूँ कि इतने सारे लोग एक साथ इतने समझहीन और विवेकहीन कैसे हो सकते है। उनकी उम्र के हिसाब से उनका व्यक्तित्व इतना घटियाइतना दो कौड़ी का कैसे हो सकता है। शायद मैं कह नही सकता कि ये शिक्षा का अभाव है या प्रेम का। पर शिक्षा का तो नही है क्यों कि शिक्षित लोगों को भी मैं ठीक उसी लहजे में लड़ते हुए पाता हूँ। हाँ ये लड़ने वाले खुद को वीर शिवा जी से कम न आंकते होंगे। पर क्या ये दो कौड़ी की लड़ाइयां और गालियाँ हमें मर्द होने का एहसास दिला सकती है। मुझे तो नहीं लगता। जरा मैं आपको लड़ाइयों की वजह तो स्पष्ट कर दूँ। अरे उस फलनवां ने मेरे खेत की मेड़ काट लीअरे उस कलुआ ने मेरी जगह में अपने खेत की सीमा को बढ़ा दिया। अरे उसका जानवर मेरे खेत में घुस गयातुम अपने घर के नाले को मेरे घर के सामने से बहाओगेअरे उस अंधियारे के लउड़ा ने मेरी बिटिया को फ़ोन किया। और न जाने कितनी तुच्छ वजहें। और इन्ही वजहों के चलते लड़ाइयाँ अत्यंत अशोभनीय गालियों से शुरू होकर लाठीडंडों और बंदूकों तक पहुँच जाती है। यहाँ तक कि निर्मम हत्याएँ भी हो जाती है। हत्यारे बड़े शौक से हत्या को अंजाम देते है। ऐसा लगता है उन्हें कानून का डर न के बराबर है। वास्तविकता भी यही है - किसी की हत्या करना लोगों के लिए मामूली सी बात हो गयी है। कानून खरीद लिया जाता है। और हत्यारों का आत्मबल निरंतर बढ़ता जा रहा है। ये निर्मम हत्याएँ जिसमें ईंटो और पत्थरों से लोगों का सर कुचल देते हैधारदार हथियारों से उनके टुकड़े - टुकड़े कर दिए जाते है। ऐसा लगता है समाज - परंपरा, इज्जत, व मान सम्मान के नाम पर वहसी दरिंदे पैदा कर रहा है।मेरी तो रूह कांप उठती है, ऐसे घातक अपराधी हमारे बीच रहते है। ये कहना गलत न होगा कि आज हम इंसानो के बीच रह रहे है बल्कि ये कहना सच होगा कि हम शैतानीं दरिंदों के बीच रह रहे है। परंतु समाज की नजर में ये निर्मम हत्याएँ मर्दानगी का प्रमाण है क्यों कि इज्जत अथवा मान सम्मान की रक्षा करना सामाजिक लोगों का धर्म है और ये हत्याएँ गौरवपूर्ण है। आखिर ये मर्दानगी से ओत-प्रोत वहसीपनये दरिंदगी इन युवाओं और बड़े बूढ़ों में आ कहाँ से रही है। क्या ये लोग इन हरकतों की आतंकी संगठनों से ट्रेनिंग लेते है या नक्सलवादी इन्हें ऑनलाइन अभ्यास कराते है।या फिर इनके रहन सहन के ढंग और तौर तरीके या इनके माँ बाप और उनका पालन पोषण या फिर इनका समाज इन्हें दरिंदा बनाता है। यहां हर युवा के अंदर एक दरिंदा छुपा हुआ हैहर बाप के अंदर भी हैबस इतना कह दो कि तुम्हारे घर की इज्जत पर आंच आने वाली है और फिर देखना ये मासूम से दिखने वाले लोग जिन्हें देखकर मैं उनके इंसान होने का भ्रम खाता हूं दरसल वो इंसान के वेश में छुपे वहसी दरिंदे हैनिर्मम हत्यारे है। इतनी अधिक दरिंदगी करते वक़्त न इनकी रूह काँपती है और न इनका हृदय आवाज देता है। आखिर इनका चित्त इतना कठोर इतना निर्मम कैसे हो सकता है। मुझे देख लो - राह चलती चींटियों के लिए मुझे अपनी रास्ता बदलनी पड़ जाती है, क्यों कि अगर भूलवश मेरे पैरों से उनकी हत्या हो भी गयी तो मेरा हृदय मुझे बेचैन कर देता है। सवाल खड़े करने लगता है। आखिर क्यों मारा उन चींटियों को जरा देखो हम मनुष्यों की अपेक्षा उनका जीवन कितना अच्छा है। एक-एक मनुष्य विषाद सेपीड़ा सेचिंताओं से भरा हुआ हैजबकि वो चींटियाँ अपने काम में मस्त है मगन है। अच्छा होता कि तुम्हारे पैरों से - जीवन से बुरी तरह से ऊभ चुके मनुष्य के वेश में छिपे इन दरिंदो की हत्या हो जाती तो शायद बेचारों की आत्मा सुकून पाती। और यही हक़ीक़त है। आज लोग जितने हिंसकजितने अशांत और जितने बहुरूपिये हो गए है, उतने पहले कभी न थे। हर घर में वहसी हत्यारे बैठे है। बस चिंगारी भड़काने की जरूरत हैविस्फोट कितना विकराल होगा कुछ भी अंदाजा नही है। और मजे की बात है कि हर घर में एक माँ भी है जो दावा करती है कि वो अपने बच्चों को इस दुनिया में सबसे ज्यादा चाहती है। बाप का तो नही कह सकता क्यों कि वो तो बहरूपिया है। न जाने कब उसके अंदर का शैतान जाग उठे। ऐसे दो रूपों के इंसान प्रेम नही कर सकते और न ही अपने बच्चों को इतना शांत और प्रेमपूर्ण बना सकते है। जरा माँ से मेरा एक सवाल है आखिर उनका वर्षों का निस्वार्थ और शक्तिशाली प्रेम; बच्चों पर इतना भी प्रभाव न छोड़ता है कि वो इंसान बन सके। उनके हृदय में अमानवता के प्रति पीड़ा हो। उनकी आत्मा उन्हें शैतानियत के प्रति रोक ले। पर सब छलावा है। सब दिखावासब ढोंग है। अगर सत्य होता तो परिणाम सार्थक सकारात्मक आतेये नकारात्मक परिणामों ने मुझे सोचने पर मजबूर किया है। काफी समय बीत चुका है, जब से मैं एक गहरी खोज में था कि आखिर सत्य क्या हैअंततः मैंने काफी हद तक बुनियादी कारणों की खोज की है। क्यों कि बचपन से मेरा हृदय इतनी अमानवता देख पाने में असफल रहा है। मेरी आत्मा इतना अन्यायइतना पापइतना ढोंग इन सब पर सवाल खड़े करती आयी है। और आज उन सवालों के दम पर मैंने यहां तक का सफर तय किया है। ये तो बस शुरुवात है पर मुझे शिखर तक जाना है। मुझे हिंसकता की जड़े भी टटोलनी है। मुझे माँ के प्रेम पर भी शक होता हैजो बच्चे को आज तक इंसानियत न सिखा पाया हो। मुझे उस हर व्यक्तिवस्तु पर शक होता है जो मनुष्य से उसकी प्रकृति को नष्ट करने की वजह बन रहा हैमुझे समाज और उसके तौर-तरीकों पर भी शक होता है। और मेरे ये शक जायज भी है। एक व्यक्ति आज जो है - वो कल का ही एक निचोड़ हैकल मतलब अपने घर काअपनी संस्कृति काअपने समाज का और उसके अपने माँ बाप - उसका परिवार और उसके शिक्षकों का। ये सारे तल हैजिनसे मिलकर आज एक बच्चा एक व्यक्ति बन पाया है। पर अगर व्यक्ति के अंदर शांति नहीं हैप्रेम नहीं हैजीवन के प्रति एक उल्लास नहीं है। है तो सिर्फ एक सोयी हुयी आग जिसे जरा सा भड़काने पर एक शैतान जन्म लेता हो तो समझ लेना सारे तल निरर्थक साबित हुए है। कोई मूल्य नहीं रहा शिक्षा कासंस्कार कायहाँ तक कि बच्चे की परवरिश का। अंततः सारे रिश्तेसारा समाज और सारी मान्यतायें मनुष्य के विकास का सारा बुनियादी ढांचा झूठा साबित हुआ है। पर किसमें हिम्मत है-जो अरबों लोगों के आगे ये बात कह जाए - कि तुम सब जिन रास्तों पर चल रहे हो, वो सब रास्ते तुम्हे शैतान बना रहे है न कि मनुष्य। जिसमें  तुम्हारे धर्म से लगाकर तुम्हारी संस्कृति; तुम्हारे गुरु; तुम्हारे ईश्वर; तुम्हारी पूजाएँ सब लगातार असफल साबित हो रही हैं।पर शायद ही लाखों में कोई एक हो।परंतु करोड़ो लोगों की मौजूदगीकरोड़ों लोगों का वो अंधा विश्वास किसी एक को क्या तवज्जो देगा ? पर कोई बात नहीं मेरा फर्ज था कि मैं सत्य को परिभाषित करूँ और मैंने शुरुवात कर दी है। क्यों कि मैं एक मनुष्य हूँ और मुझे मनुष्यता से प्रेम है। ईश्वर की रची इस खूबसूरत दुनिया से अत्यंत लगाव है। जीवन के प्रति मेरे हृदय में आदर हैसम्मान हैसंगीत है। और प्रेम मेरे लिए प्रार्थना समान है। प्रेम के अलावा कुछ भी शास्वत नहीं है। प्रेम के सिवा कोई पूजा नही है। प्रेम सर्वोपरि है और प्रेम ही जीवन है। अभी इतना ही जल्द ही मिलते है अन्य गहन तथ्यों के साथ। क्योंकि आने वाला कल नर्क से भी भयावह होगा अगर आज से ही हमने बदलाव की नींव न रखी तो।
धन्यवाद...!

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#NO_MORE_INJUSTICE_NOW
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Sunday 15 September 2019

REAL YOUTH - युवक कौन ?


युवक कौनयुवक होने के वास्तविक लक्षणों का गहनतम अध्यन।
हर भारतीय नवयुवक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण लेख जो वास्तविक ज्ञान के साथ साथ अध्यात्मिक एवं आत्मिक विकास पर भी ज़ोर देता हो। अगर नवयुवकों ने इसे न पढ़ा तो समझो जीवन में कुछ भी न पढ़ा, कुछ भी न सीखा और कुछ भी न जाना। बस भेड़ की तरह भीड़ में शामिल हुये और भेड़ की तरह भीड़ में गुम। चलिये शुरुवात करते है...
युवकों के लिए कुछ भी बोलने के पहले यह ठीक से समझ लेना जरूरी है कि युवक का अर्थ क्या है?
युवक का कोई भी संबंध शरीर की अवस्था से नहीं है। न ही उम्र से युवा होना है। बूढ़े भी युवा हो सकते हैंऔर युवा भी बूढ़े हो सकते हैं। लेकिन ऐसा कभी - कभी ही होता है कि बूढ़े युवा हो, लेकिन ऐसा अक्सर होता है कि युवा बूढ़े होते हैं। और इस देश में तो युवक पैदा होते हैं यह एक संदिग्ध बात है।
युवा होने का अर्थ है - चित्त की एक दशाचित्त की एक जीवंत दशालिविंग स्टेट ऑफ माइंड। बूढ़े होने का अर्थ है - चित्त की मरी हुई दशा। मतलब जीवन के प्रति हमारा आंतरिक (आत्मिक) व्यवहार, जीवन के प्रति हमारी सोच कैसी होनी चाहिए ये हमारे चित्त का व्याख्यान करती है। जीवन के प्रति सकारात्मक सोच, जो कुछ भी गलत हो रहा है उसे बदलने की सोच अगर ऐसा है तो चित्त युवा है। और जीवन के प्रति नकारात्मक सोच जो कुछ भी गलत हो रहा है उसे बदलने के बारे में न सोच कर उससे बचना मतलब चित्त मर चुका है। जीवन में चल रही समस्याओं के प्रति हमारा ये कहकर समस्याओं को स्वीकार लेना कि मैं अकेला इन समस्याओं को मिटा नहीं सकता। ऐसी सोच को ऐसे युवक को हम सही शब्दों में बूढ़ा कह सकते है। भले ही उसके पास एक जवान शरीर हो। दूसरी तरफ वास्तविक युवक किसी भी तरह की समस्याओं को देखकर उन्हे अनदेखा न करे वो ये न सोचे की मैं अकेला कुछ नहीं कर सकता बल्कि वो ये सोचे मैं अकेला जितना भी कर सकता हूँ मैं करूंगा और अगर दूसरे भी साथ देंगे तो और अच्छा पर मैं अकेले करूंगा जरूर। बस यही वास्तविक युवक है और ऐसी जीवंत सोच अगर बूढ़े में भी है तो वो बूढ़ा भी युवा है।
जीवन क्या है ? जरा यहाँ से समझिए - सीखने की प्रक्रिया है - जीवन। ज्ञान की उपलब्धि है - जीवन। लेकिन इस देश का दुर्भाग्य है कि हमने सीखना तो हजारों साल से बंद कर दिया है। हम नया कुछ भी सीखने को उत्सुक और आतुर नहीं हैं। हमारे प्राणों की प्यास ठंडी पड़ गई हैहमारी चेतना की ज्योति ठंडी पड़ गई हैहमें एक भ्रम पैदा हो गया है कि हमने सब सीख लिया हैहमने सब पा लियाहमने सब जान लिया। जानने को अनंत शेष है। आदमी का ज्ञान कितना ही ज्यादा हो जाएउस अनंत विस्तार के सामने ना कुछ है, जो सदा जानने को शेष रह जाता है। ज्ञान तो थोड़ा सा हैअज्ञान बहुत बड़ा है। उस अज्ञान को जिसे तोड़ना है उसे सीखते ही जाना होगासीखते ही जाना होगासीखते ही रहना होगा।
लेकिन भारत में यह सीखने की प्रक्रिया और युवा होने की धारणा ही खो गई है। यहां हम बहुत जल्दी सख्त हो जाते हैंकठोर हो जाते हैंलोच खो देते हैं। बदलाहट की क्षमतारिसेप्टिविटीग्राहकता सब खो देते हैं। एक जवान आदमी से भी यहां बात करो तो वह इस तरह बात करता है जैसे उसने अपनी सारी धारणाएं सुनिश्चित कर ली हैं। उसका सब ज्ञान ठहर गया हैउसकी आंखों में इंक्वायरी नहीं मालूम होतीउसके व्यक्तित्व में जिज्ञासा नहीं मालूम होतीखोज नहीं मालूम होती। ऐसा लगता हैउसने पा लियाजान लियासब ठीक है। आगे अब कुछ करने को शेष नहीं रह गया है। और प्राण इस तरह बूढ़े हो जाते हैंव्यक्तित्व इस तरह जराजीर्ण हो जाता है और हजारों वर्षों से इस देश का व्यक्तित्व जरा-जीर्ण है।
युवक के सामने एक ही कर्तव्य है, सुरक्षा से बचें। सुरक्षा हमें खायेगी ही। सुरक्षा के कारण हम नयें की खोज नहीं कर पाते। क्योंकि सुरक्षा सदा पुराने के साथ होती है। नयें में सदा भूल-चूक हैं, नये में सदा असफलता हैं। नया पुराने के बराबर प्रमाणित होगा या नहीं होगा, यह सदा डर हैं। नयें से कहीं पहुंचेंगे, नहीं पहुंचेंगे, यह भय है। नये का डर, नये का भय, हमें पुराने के साथ जीवन पर्यंत जोड़े रखता है। सुरक्षा पुराने को पकड़ा देती है और हम उस पुराने को पाकर तृप्त हो जाते है। इसलिए हम नया अविष्कार न करेंगे, नई खोज न करेंगे, जिन्दगी के लिए नये नियम न निकालेंगे, जीवन के संबंधो में नये संबंध स्थापित न करेंगे। पुरानी लीक को पकड़ेंगे और चलेंगे। बूढ़ा चित्त पुरानी लीक पर चलने वाला चित्त है। भटकता नहीं कभी, भूलता नहीं कभी, लेकिन जीता भी नहीं कभी। भटकन भी चाहिए, भूल भी चाहिए, असफलता भी चाहिए। ध्यान रहे, जो असफल होने की हिम्मत जुटाते हैं, उनके ही सफल होने की संभावना भी है। जो असफलता से बच जाते हैं वे सफलता से भी बच जाते हैं। ये दोनों चीजें साथ हैं। जो भूल नहीं करते हैं, वे कभी ठीक भी नहीं कर पाते हैं। और जो भूल करने की हिम्मत जुटाते हैं, उनसे कभी ठीक भी हो सकता है। तो मैं इतना ही कहूँगा संक्षिप्त में कि युवक - युवक होने की फिकर करे! इतना ही काफी है। इस फिकर में सब आ जाएगा। हमारा सारा देश विश्वास करने वाला देश है। मान लेना हैहमें जो कहा जाता है उस पर सोचना नहीं हैविचार नहीं करना हैक्योंकि सोचने और विचार करने में फिर खतरा है। हो सकता हैहम मानी हुई मान्यताओं से विपरीत जाना पड़े हमें। हो सकता हैमानी हुई मान्यताएं तोड़नी पड़ेंहो सकता है जो स्वीकृत हैजो पक्ष है हमारा वह गलत सिद्ध होयह हम सहने को राजी नहीं हैंइसलिए उसकी तरफ आंख ही नहीं खोलनी है। शुतुरमुर्ग निकलता है और अगर उसका दुश्मन आ जाए तो वह रेत में मुंह गड़ा कर खड़ा हो जाता है। आंख बंद हो जाती है रेत में, तो शुतुरमुर्ग को दिखाई नहीं पड़ता है कि दुश्मन हैवह खुश हो जाता हैवह मान लेता है जो नहीं दिखाई पड़ता हैवह नहीं है। शुतुरमुर्ग को क्षमा किया जा सकता हैआदमी को क्षमा नहीं किया जा सकता। लेकिन भारत शुतुरमुर्ग के तर्क का उपयोग कर रहा है आज तक। वह कहता हैजो चीज नहीं दिखाई पड़ती हैवह नहीं है। इसलिए विश्वास का अंधापन ओढ़ लेता है और जीवन को देखना बंद कर देता है। जीवन में नग्न सत्य हैंजिसे देखने में पीड़ा हो सकती हैलेकिन सत्य तो सत्य हैं। चाहे कितनी ही पीड़ा होउसे आंख खोल कर देखना पड़ेगा। क्योंकि आंख खोल कर देखने पर ही हम असत्य को रूपांतरित करने मेंबदलने मेंट्रांसफर करने में भी सफल हो सकते हैं। आंख बंद कर लेने से हम अंधे हो सकते हैं लेकिन तथ्य बदल नहीं जाते। हम सारे तथ्यों को छिपा कर जी रहे हैं। क्योंकि विश्वास की एक गैर साहसपूर्ण धारणा हमने पकड़ ली है। संदेह की साहसपूर्ण यात्रा हमारी नहीं है। इसी वजह से हमारा साहस कम हो गया हैअकेले होने की हिम्मत हमारी कम हो गई है। और ध्यान रहेयुवक का अनिवार्य लक्षण हैअकेले होने की हिम्मतदि करेज टु स्टैंड अलोन। वह युवक होने का एक अनिवार्य लक्षण है। हम भीड़ के साथ खड़े हो सकते हैं। जहां सारे लोग जाते हैं वहां हम जा सकते हैं। हम वहां नहीं जा सकते जहां आदमी को अकेला जाना पड़ता है। नई जगह तो आदमी को सदा अकेला जाना पड़ता है। किसी एक व्यक्ति को अकेले चलने की हिम्मत करनी पड़ती है। क्योंकि भीड़ तो पहले प्रतीक्षा करेगी कि पता नहीं, रास्ता कैसा है। अकेले आदमी को हिम्मत जुटानी पड़ती है। हमने अकेले होने की हिम्मत न जाने कब की खो दी है हमें इसका पता ही नहीं हैहम अकेले हो ही नहीं सकते। हमें भीड़ चाहिए हमेशा साथतो ही हम खड़े हो सकते हैं। फिर हम युवा नहीं रह जाते। फिर हम युवा नहीं रह जाते। फिर वह जो यंग माइंड, युवा मस्तिष्क है वह हममें पैदा नहीं हो पाता। आने वाला देश का भविष्य चाहता हैअकेले होने का साहस एक - एक युवक में पैदा होना चाहिए। जिस दिन एक - एक युवक अकेला खड़े होने की हिम्मत करता हैउस दिन पहली बार उसकी आत्मा प्रकट होनी शुरू होती हैउसकी प्रतिभा प्रकट होनी शुरू होती है। जब वह कहे - कि चाहे सारी दुनिया यह कहती हो लेकिन जब तक मेरा विवेक नहीं मानतामैं अकेला खड़ा रहूंगा। मैं सारी दुनिया के प्रवाह के विपरीत तैरूंगा। नदी इस तरफ जाती है इस तरफ मुझे पूरब प्रतीत नहीं होतामुझे नहीं तर्क कहतामेरा विवेक कहता है कि मैं पूरब जाऊं ! मैं पश्चिम की तरफ तैरूंगा टूट जाऊंगानदी की धारा की दिशा मेंलेकिन कोई फिकर नहींधारा के साथ तभी तैरूंगा जब मेरा विवेक मेरे साथ होगा। जिस दिन कोई व्यक्ति जीवन की धारा के विपरीत अपने विवेक के अनुकूल तैरने की कोशिश करता हैपहली बार उसके जीवन में कोई चुनौती आती हैवह चैलेंज! वह संघर्ष आता हैवह स्ट्रगल आती हैजिस संघर्ष और चुनौती में से गुजर कर उसकी आत्मा निखरती हैसाफ होती है। आग से गुजर कर पहली दफे उसकी आत्मा कुंदन बनती हैस्वर्ण बनती हैलेकिन वह साहस हमने खो दिया है। अकेले होने की हिम्मत हमने खो दी है।
क्या आप युवक हैं अगर युवक हैं तो जीवन में अकेले खड़े होने की हिम्मत जुटानी पड़ती है और ध्यान रहेअकेले खड़े होने का अर्थ होता हैविवेक को जगाना। क्योंकि जो विवेक को न जगा सके वह अकेला खड़ा नहीं हो सकता है। इसलिए तीसरी बात आने वाला भविष्य चाहता है कि इस देश मेंव्यक्ति-व्यक्ति के भीतर विवेकबोधसमझअंडरस्टैंडिंग को जगाने की उत्सुकता जन्में। क्योंकि अकेला आदमी तभी अकेला हो सकता हैचाहे दुनिया उसके साथ न होअगर उसके पास उसका विवेक साथ है। उसकी आँखों में स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है कि जो वह कर रहा हैवह ठीक है। उसका तर्क उसके प्राण उससे कह रहे हैं कि वह जो कर रहा हैवह ठीक हैचाहे सारी दुनिया विपरीत हो।
हमारा युवक जीवन के सामने बैंकरप्टदिवालिया की तरह खड़ा हो जाता है। उसके पास कुछ भी नहीं है। कुछ सर्टिफिकेट हैंकागज के कुछ ढेर हैं। उनका वह पुलिंदा बांध कर जिंदगी के सामने खड़ा हो जाता है। उसके पास भीतर और कुछ भी नहीं है। यह बड़ी दयनीय अवस्था है। यह बहुत दुखद है और फिर इस स्थिति में फ्रस्ट्रेशन पैदा होता हैविषाद पैदा होता हैतनाव पैदा होता हैक्रोध पैदा होता है। और इस क्रोध में वह हिंसक होकर तोड़ने - फोड़ने में लग जाता हैचीजें नष्ट करने में लग जाता है। आज सारे देश का बच्चा-बच्चा क्रोध से भरा हुआ है। क्रोध में वह कुर्सियां तोड़ रहा हैफर्नीचर तोड़ रहा हैबस जला रहा है। नेता हैं मुल्क केवे कहते हैं कुर्सियां मत तोड़ोबस मत जलाओमकान मत मिटाओखिड़कियां मत तोड़ो। लेकिन नेता भी जानते हैं कि वे भी नेता कुर्सियां तोड़ करबसें जला कर और कांच फोड़ कर हो गए हैं। उनको पक्का पता हैउनकी सारी नेतागीरी इसी तरह की तोड़-फोड़ पर निर्भर होकरखड़ी हो गई है। यह बच्चे भी जानते हैं कि नेता होने की तरकीब यही है कि कुर्सियां तोड़ोमकान तोड़ोआग लगाओ।
इसलिए वे पुराने नेता जो कल यही सब तोड़-फोड़ करते रहे थेआज यही नेता ही दूसरे को समझाएंगे। पर यह समझ में आने वाली बात नहीं है। फिर उन नेताओं को यह भी पता नहीं है कि कुर्सियां तोड़ी जा रही हैं। यह सिर्फ सिंबालिक है। कुर्सियों से बच्चों को क्या मतलब हो सकता हैकिस आदमी को कुर्सी तोड़ने से मतलब हो सकता है! बस जलाने से किसको मतलब हो सकता हैबस से किसकी दुश्मनी हैऐसा पागल आदमी खोजना मुश्किल है जिसकी बस से भी कोई दुश्मनी होकि कांच तोड़ने में कुछ रस आता हो। नहींयह सवाल नहीं है। यह सवाल ही नहीं है। यह बिलकुल असंगत है। इससे कोई संबंध नहीं है। युवक जो भीतर से अशांतपीड़ित और परेशान मुख्य बात तो यही है। और परेशान आदमी कुछ भी चीज तोड़ लेता है तो थोड़ी सी राहत मिलती है। थोड़ा रिलैक्सेशन मिलता है। कुछ भी तोड़ ले।
युवक के पास क्रोध तो बहुत हैशांति बिलकुल नहीं है। इसलिए सारा उपद्रव हो रहा है। उपद्रव बढ़ेगाउपद्रव गहरा होगा। अभी वे मकान तोड़ रहे हैंकल वह मकान जलाएंगे। अभी वह बसें जला रहे हैंकल वह आदमियों को जलाएंगे। पचास साल के भीतरआदमी जलाए जाएंगेअगर युवक का क्रोध इसी तरह गति करता रहाऔर अगर उसे शांति की दिशा में ले जाने का कोई उपाय नहीं मिल सका तो। मनुष्य की चेतना ने ज्ञान तो अर्जित कर लिया हैबुद्धिमत्ता अर्जित नहीं की। मनुष्य की चेतना ने सूचनाएं तो इकट्ठी कर ली हैंलेकिन चेतना ज्ञानवान नहीं हो पाई है। मनुष्य ने महत्वाकांक्षा तो सीख ली हैएंबीशन तो सीख ली है। सारी शिक्षा का एक ही फल हुआ है कि आदमी को महत्वाकांक्षी बना दिया हैलेकिन शांति उसके पास बिलकुल नहीं है। तो देश के भविष्य को मतलब युवाओं को ध्यान और प्रेम के माध्यम से शांति का एक आंदोलन चलाना होगा। व्यक्ति को चाहिए शांति और समाज को चाहिए क्रांति। ये दो बातें भविष्य में आने वाले क्रांति दल के बुनियादी आधार बनने चाहिए - व्यक्ति को चाहिए शांति और समाज को चाहिए क्रांति। व्यक्ति हो इतना शांत कि उसके भीतर कोई पीड़ाकोई दुखकोई क्रोध न रह जाए। और समाज है गलतसमाज है रुग्णसमाज है अग्लीसमाज है कुरूप। हजारों साल की बेवकूफियों के आधार पर समाज हमारा निर्मित है। उन सब को आग लगा देनी हैउन बेवकूफियों कोउन सबको जिनके आधार पर हम खड़े हैं। अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि सारे सामाजिक तानों  – बानों को हम इज्जत जैसे आत्मघाती एवं बेबुनियाद तथ्यों से जोड़ देते है। कुछ भी सामाजिक लीक से हटकर करना या सोचना सीधा हमारे इज्जत पर प्रहार करता है और लीक पर चलने वाले भारतीय नवयुवा ऐसा सपनों में भी नहीं सोच सकते, ऐसा कुछ सोचने या करने पर उनके माँ-बाप की इज्जत, उनका पीढ़ियों तक का मान सम्मान, पद - प्रतिष्ठा सब कुछ महज सेकेंड में ही जलकर खाक हो जाता है। अब इज्जत न रही तो जीवन कैसा। हो सकता है सब आत्महत्या करने को निकाल पड़े। धन्य है भारतीय युवा। इन सब मूर्खता भरी बातों पर मैं अगर हँसने बैठूँ तो शायद मैं रात तक हँसता ही रहूँ और सुबह को मेरा दिवालिया निकल जाए सारे समाज में। यह जो ऊपर ध्यान और प्रेम की जो बात कही गयी है उस पर विस्तृत रूप से चर्चा होगी जुड़े रहिए।
क्रमश : आगे बढ़ते है -
इस देश में युवक पैदा ही शायद नहीं होते हैं। 'जब ऐसा मैं कहता हूं तो उसका अर्थ यही है कि हमारा चित्त जीवंत नहीं है। वह जो जीवन का उत्साहवह जो जीवन का आनंद और संगीत हमारे हृदय की वीणा पर होना चाहिएवह नहीं है। आंखों मेंप्राणों मेंरोमरोम मेंवह जो जीवन को जीने की उद्दाम लालसा होनी चाहिएवह हममें नहीं है। जीवन को जियेंइससे पहले ही हम जीवन से उदास हो जाते हैं। जीवन को जानेंइससे पहले ही हम जीवन को जानने की जिज्ञासा की हत्या कर देते हैं।
इस देश में युवक जीवन के उस उद्दाम वेग से आपूरित नहीं मालूम पड़ते और न ऐसा लगता है कि उनके ह्रदय मेंउनके प्राणों में उन शिखरों को छूने की कोई आकांक्षा हैजो जीवन के शिखर हैं। न ऐसा लगता है कि उन अज्ञात सागरों को खोजने के लिए प्राणों में कोई प्रबल पीड़ा है, उन सागरों को जो जीवन के सागर हैं, जीवन के अंधेरे कोन जीवन के प्रकाश कोन जीवन की गहराई कोन जीवन की ऊंचाई कोन जीवन की हार कोन जीवन की जीत कोकुछ भी जानने का जो उद्दाम वेगजो गतिजो ऊर्जा होनी चाहिएवह युवक के पास नहीं है। इसलिए युवक भारत में हैं - ऐसा कहना केवल औपचारिकता हैखानापूर्ति है, सत्यता नहीं है।
भारत में युवक नहीं हैंभारत हजारों साल से बूढ़ा देश है। उसमें बूढ़े पैदा होते हैंबूढ़े ही जीते हैं और बूढ़े ही मर जाते हैं। जवान पैदा ही नहीं होते।
हम इतने बूढ़े हो गये है कि हमारी जड़ें ही जीवन के रस को नहीं खींचती और न हमारी शाखाएं जीवन के आकाश में फैलती हैं और न हमारी शाखाओं में जीवन के पक्षी बसेरा करते हैं और न हमारी शाखाओं पर जीवन का सूरज उगता है और न जीवन का चांद चांदनी बरसाता है। सिर्फ धूल जमती जाती हैजड़ें सूखती जाती हैंपत्ते कुम्हलाते जाते हैं। फूल पैदा नहीं होतेफल आते नहीं हैं। वृक्ष हैंन उनमें पत्ते हैंन फूल हैं। सूखी शाखाएं खड़ी हैं। ऐसा अभागा हो गया है यह देश!
जब युवकों के संबंध में कुछ बोलना हो तो पहली बात यही ध्यान देनी जरूरी है। यदि युवक कोई शारीरिक अवस्था हैतब तो हमारे पास भी युवक हैं। युवक अगर कोई मानसिक दशा हैस्टेट आफ माइंड हैतो युवक हमारे पास नहीं हैं।
अगर युवक हमारे पास होते तो देश में इतनी गंदगीइतनी सड़ांधइतना सड़ा हुआ समाज जीवित रह सकता थाकभी की उन्होंने आग लगा दी होती। अगर युवक हमारे पास होतेतो हम एक हजार साल तक गुलाम रहतेकभी की गुलामी को उन्होंने उखाड़ फेंका होता। अगर युवक हमारे पास होते तो हम हजारोंहजारों साल तक दरिद्रता, दीनता और दुख में बितातेहमने कभी की दरिद्रता मिटा दी होती या खुद मिट गये होते।
लेकिन नहींयुवक शायद नहीं हैं। युवक हमारे पास होते तो इतना पाखंड इतना अंधविश्वास पलता इस देश मेंक्या युवक बरदाश्त करते ?
लेकिन युवक मुल्क में नहीं हैंइसलिए किसी भी तरह की मूढ़ता चलती हैइसलिए मुल्क में किसी भी तरह का अंधकार चलता है। युवकों के होने का सबूत नहीं मिलता देश को देखकर! क्या चल रहा है देश मेंयुवक किसी भी चीज पर राजी हो जाते हैं! वह युवक कैसा जिसके भीतर विद्रोह न होरिवोल्युशन न होयुवक होने का मतलब क्या हुआ? जो गल्ती के सामने झुक जाता होउसको युवक कैसे कहेंजो टूट जाता हो लेकिन झुकता न होजो मिट जाता हो लेकिन गलत को बरदाश्त न करता होवैसी स्पिरिट (आत्मा)वैसी चेतना का नाम ही युवक होना है। टु बी यंग युवा होने का एक ही मतलब है। एक विद्रोही आत्माजो झुकना नहीं जानतीटूटना जानती है। जो बदलना चाहती है व्यर्थ हो चुके जीवन के सभी आयामों को अगर ऐसी आत्मा युवक में है तो उसे ही हम वास्तविक युवक कह सकते है। नवयुवा जो जिंदगी को नयी दिशाओं मेंनये आयामों में ले जाना चाहते हैंजो जिंदगी को परिवर्तित करना चाहते हैं। क्रांति की वह उद्दाम आकांक्षा ही युवा होने के लक्षण हैं।
1962 में चीन में अकाल की हालत थी। ब्रिटेन के कुछ भले मानुषों ने एक बड़े जहाज पर बहुत सा सामानबहुत सा भोजनकपड़ेदवाइयां भरकर वहां भेजे। हम अगर होते तो चन्दन तिलक लगाकर फूल मालाएं पहनाकर उस जहाज की पूजा करतेलेकिन चीन ने उसको वापस भेज दिया और जहाज पर बड़ेबड़े अक्षरों में लिख दियाहम मर जाना पसंद करेंगेलेकिन भीख स्वीकार नहीं कर सकते। शक होता है कि यहां कुछ जवान लोग होंगे!
जवान ही यह हिम्मत कर सकता है कि भूखे मरते देश मेंबाहर से भोजन आया हो और लिख दे जहाज पर कि हम भूखों मर सकते हैंलेकिन भीख नहीं मांग सकते।
भूखा मरना इतना बुरा नहीं हैभीख मांगना बहुत बुरा है। लेकिन जवानी हो तो बुरा लगेभीतर जवान खून हो तो चोट लगेअपमान हो। हमारा अपमान नहीं होता! हम शांति से अपमान को झेलते चले जाते हैं! हम बड़े तटस्थ हैंअपमान को झेलने में कुछ भी हो जायेहम आंख बंद करके झेल लेते हैं। यह तो संतोष काशांति का लक्षण है कि जो भी होउसको झेलते रहोबैठे रहो चुपचाप और झेलते रहो। हजारों साल से देश दुख झेलझेल कर मर गया तो कैसे हम स्वीकार कर लें कि देश के पास जवान आदमी हैंअथवा युवक हैं। युवक देश के पास नहीं हैं। और इसलिए पहला काम तथाकथित युवकों के लिए.. जो उम्र से युवक दिखायी पड़ते हैंवह यह है कि वह देश में मानसिक यौवन को पैदा करने की चेष्टा करें। वे शरीर के यौवन को मानकर तृप्त न हो जायें। आत्मिक यौवनस्प्रीचुअल (आध्यात्मिक) यंगनेस पैदा करने का एक आदोलन सारे देश में चलना चाहिए। हम इससे राजी नहीं होंगे कि एक आदमी शकल सूरत से जवान दिखायी पड़ता है तो हम जवान मान लें। हम इसकी फिक्र करेंगे कि हिन्दुस्तान के पास जवान आत्मा हो।
भारत को एक युवा अध्यात्म चाहिए। युवा अध्यात्म। बूढा अध्यात्म हमारे पास बहुत है। हमारे पास ऐसा अध्यात्म हैजो बूढ़ा करने की कीमिया हैकेमिस्ट्री है। हमारे पास ऐसी आध्यात्मिक तरकीबें हैं कि किसी भी जवान के आसपास उन तरकीबों का उपयोग करोवह फौरन बूढ़ा हो जायगा। हमने बूढ़े होने का राज खोज लिया हैसीक्रेट खोज लिया है। बूढ़े होने का क्या राज हैबूढ़ा होने का राज है : जीवन पर ध्यान मत रखोमौत पर ध्यान रखो। यह पहला सीक्रेट है। जिंदगी पर ध्‍यान मत देनाध्यान रखना मौत पर। जिंदगी की खोज मत करनाखोज करना मोक्ष की। इस पृथ्वी की फिक्र मत करनाफिक्र करना परलोक कीस्वर्ग की। यह बूढ़ा होने का पहला सीक्रेट है। जिन - जिन को बूढ़ा होना होइसे नोट कर लें। कभी जिंदगी की तरफ मत देखना। अगर फूल खिल रहा हो तो तुम खिलते फूल की तरफ मत देखनातुम बैठकर सोचना कि जल्द ही यह मुरझा जायेगा। यह बूढ़े होने की तरकीब है।
अगर एक गुलाब के पौधे के पास खड़े हों तो फूलों की गिनती मत करनाकांटों की गिनती करना की सब असार हैकांटे ही कांटे पैदा होते हैं। एक फूल खिलता हैमुश्किल से हजार कांटों में। हजार कांटों की गिनती कर लेना। उससे जिंदगी असार सिद्ध करने में बड़ी आसानी मिलेगी।
अगर दिन और रात को देखोतो कभी मत देखना कि दो दिन के बीच एक रात है। हमेशा ऐसा देखना कि दो रातों के बीच में एक छोटासा दिन है।
बूढ़े होने की तरकीब कह रहा हूं। जिंदगी में जहां अंधेरे होंउन अँधेरों पर अत्यधिक ध्यान देना और जहां रोशनी दिखाई पड़ेवहाँ ज्यादा ध्यान मत देना। जहां फूल दिखाई पड़ेगिनती मत करना और फौरन सोच लेना क्या रखा है फूल मेंक्षण भर को हैअभी खिला हैअभी मुरझा जायेगा। और कांटा स्थायी हैशाश्वत हैसनातन हैन कभी खिलता हैन कभी मुरझाता है। हमेशा है। इन बातों पर ध्यान देने से आदमी बहुत जल्दी बूढ़ा हो जाता है।
बूढे का जिंदगी को देखने का ढंग है - दुखद को देखनाअंधेरे को देखनामौत को देखनाकांटे को देखना।
हिंदुस्तान हजारों साल से दुखद को देख रहा है। जन्म भी दुख हैजीवन भी दुख हैमरण भी दुख है! प्रियजन का बिछुड़ना दुख हैअप्रियजन का मिलना दुख हैसब दुख है! मां के पेट का दुख झेलोफिर जन्म का दुख झेलोफिर बड़े होने का दुख झेलोफिर जिंदगी में गृहस्थी के चक्कर झेलोफिर बुढ़ापे की बिमारियां झेलीफिर मौत झेलो, इस तरह जीवन में दुखों की एक लम्बी कथा है। बूढ़ा होना हो तो इस कथा का स्मरण करना चाहिए। बूढ़ा होना है तो बगीचे में नहीं जाना चाहिएहमेशा मरघट पर बैठकर ध्यान करना चाहिएजहां आदमी जलाये जाते हों। सुंदर से बचना चाहिएअसुंदर को देखना चाहिए। विकृत को देखना चाहिएस्वस्थ को छोडना चाहिए। सुख मिले तो कहना चाहिए क्षणभंगुर हैअभी खत्म हो जायेगा। दुख मिले तो छाती से लगाकर बैठ जाना चाहिए। और सदा आंखें रखनी चाहिए जीवन के उस पारकभी इस जीवन पर नहीं।
इस जीवन को समझना चाहिए कि यह एक वेटिंग रूम है। जैसे किसी स्टेशन पर एक वेटिग रूम होउसमें बैठते हैं आप थोड़ी देर। वहीं छिलके फेंक रहे हैं वहीं पान थूक रहे हैंक्योंकि हमको क्या करना हैअभी थोड़ी देर में हमारी ट्रेन आयेगी और फिर हम चले जायेंगे। तुमसे पहले जो बैठा थावह भी वेटिंग रूम के साथ यही सदव्यवहार कर रहा थातुम भी वही सदव्यवहार करोतुम्हारे बाद वाला भी वही करेगा। वेटिंग रूम गंदगी का एक घर बन जायेगाक्योंकि किसी को क्या मतलब है। हमको थोड़ी देर रुकना है तो आंख बंद करके रामराम जप के गुजार देंगे। अभी ट्रेन आती हैचली जायेगी।
जिंदगी के साथ जिन लोगों की आंखें मौत के उस पार टिकी हैं, उनका व्यवहार वेटिंग रूम का व्यवहार है। वे कहते हैंक्षण भर की तो जिंदगी हैअभी जाना हैक्या करना है हमें। हिंदुस्तान के संतमहात्मा यही समझा रहे हैं लोगों कोक्षणभंगुर है जिंदगीइसके मायामोह में मत पड़ना। ध्यान वहां रखना आगेमौत के बाद। इस छाया में सारा देश बूढा हो गया है।
युवा होने के लक्षण - अगर जवान होना है तो जिंदगी को देखनामौत को लात मार देना। मौत से क्या प्रयोजन हैजब तक जिंदा हैंतब तक जिंदा हैं। तब तक मौत नहीं है। सुकरात मर रहा था। ठीक मरते वक्त जब उसके लिए बाहर जहर घोला जा रहा था। वह जहर घोलने वाला धीरेधीरे घोल रहा है। वह सोचता हैजितने देर सुकरात और जिंदा रह लेअच्छा है। जितनी देर लग जाय। वक्त हो गया हैजहर आना चाहिए। सुकरात उठकर बाहर जाता है और पूछता है मित्रकितनी देर और हैउस आदमी ने कहातुम पागल हो गये हो सुकरातमैं देर लगा रहा हूं इसलिए कि थोड़ी देर तुम और रह लोथोड़ी देर सांस तुम्हारे भीतर और आ जायथोड़ी देर सूरज की रोशनी और देख लोथोड़ी देर खिलते फूलों कोआकाश कोमित्रों की आंखों को और झांक लोबस थोड़ी देर और। नदी भी समुद्र में गिरने के पहले पीछे लौटकर देखती है। तुम थोड़ी देर लौटकर देख लो। मैं देर लगाता हूं तुम जल्दी क्यों कर रहे होतुम इतनी उतावली क्यों किये जा रहे हो?
सुकरात ने कहामैं जल्दी क्यों किये जा रहा हूं! मेरे प्राण तड़पे जा रहे हैं मौत को जानने को। नयी चीज को जानने की मेरी हमेशा से इच्छा रही है। मौत बहुत बड़ी नयी चीज हैसोचता हूं देखूं क्या चीज है!यह आदमी जवान हैवास्तविक रूप से जवान है। मौत को भी देखने के लिए इसकी आतुरता है। मित्र कहने लगा कि थोड़ी देर और जी लो। सुकरात ने कहाजब तक मैं जिन्दा हूं मैं यह देखना चाहता हूं कि जहर पीने से मरता हूं कि जिंदा रहता हूं। लोगों ने कहा कि अगर मर गये तो?
उसने कहा कि यदि मर ही गये तो फिक्र ही खत्म हो गयी। चिंता का कोई कारण न रहा और जब तक जिंदा हूं जिंदा हूं। जब मर ही गयेचिंता की कोई बात नहींखत्म हो गयी बात। लेकिन जब तक मैं जिंदा हूं तब तक मैं मरा हुआ नहीं हूं और पहले से क्यों मर जाऊंमित्र सब डरे हुए बैठे हैं पासरो रहे हैंजहर की घबराहट आ रही है।
वह सुकरात प्रसन्न है! वह कहता हैजब तक मैं जिन्दा हूं तब तक मैं जिंदा हूं तब तक जिंदगी को जानूं। और सोचता हूं कि शायद मौत भी जिंदगी में एक घटना है। सुकरात को बूढ़ा नहीं किया जा सकता। मौत सामने खड़ी हो जाय तो भी यह बूढ़ा नहीं होता।
और हम जिंदगी सामने खड़ी रहती है और बूढ़े हो जाते हैं। यह रुख भारत में युवा मस्तिष्क को पैदा नहीं होने देता है। जीवन का विषादपूर्ण चित्र फाड़कर फेंक दो। और उसमें जिंदगी के दुख और जिंदगी के विषाद को बढ़ा - चढ़ा कर बतलाते हैंवे जिंदगी के दुश्मन हैंदेश में युवा को पैदा होने देने में दुश्मन हैं। वह युवक को पैदा होने के पहले ही उसे बूढ़ा बना देते हैं।
रवीन्द्रनाथ मर रहे थे। एक बूढे मित्र आये और उन्होंने कहाअब मरते वक्त तो भगवान से प्रार्थना कर लो कि अब दोबारा जीवन में न भेजे। अब आखिरी वक्त प्रार्थना कर लो कि अब आवागमन से छुटकारा हो जाये। अब इस ख्वाबइस गंदगी के चक्कर में न आना पड़े। रवीन्द्रनाथ ने कहाक्या कहते हैं आपमैं और यह प्रार्थना करूंमैं तो मन ही मन यह कह रहा हूं कि हे प्रभुअगर तूने मुझे योग्य पाया होतो बार-बार तेरी पृथ्वी पर भेज देना। बड़ी रंगीन थीबड़ी सुन्दर थीऐसे फूल नहीं देखेऐसा चांदऐसे तारेऐसी आंखेंऐसा सुन्दर चेहरा! मैं दंग रह गया हूं। मैं आनन्द से भर गया हूं। अगर तूने मुझे योग्य पाया हो तो - हे परमात्माबारबार इस दूनिया में मुझे भेज देना। मैं तो यह प्रार्थना कर रहा हूं; मैं तो डरा हुआ हूं कि कहीं मैं अपात्र न सिद्ध हो जाऊं कि दोबारा न भेजा जाऊं। रवीन्द्रनाथ को बूढ़ा बनाना बहुत मुश्किल है। शरीर बूढ़ा हो जायेगा। लेकिन इस आदमी के भीतर जो आत्मा हैवह जवान हैवह जीवन की मांग कर रही है। रवीन्द्रनाथ ने मरने के कुछ ही घड़ी पहलेकुछ कड़ियां लिखवायी। उनमें दो कड़ियां हैं। देखा तो मैं नाचने लगा! क्या प्यारी बात कही है!
किसी मित्र ने रवीन्द्रनाथ को कहा कि तुम तो महाकवि होतुमने छह हजार गीत लिखेजो संगीत में बांधे जा सकते है! Percy Bysshe Shelley जो पश्चिमी देशों के महानतम कवियों में से एक थे। उनके बारे में पश्चिम के लोग कहते हैंउसके तो सिर्फ दो हजार गीत संगीत में बंध सकते हैंतुम्हारे तो छह हजार गीत! तुमसे बड़ा कोई कवि दुनिया में कभी नहीं हुआ।
रवीन्द्रनाथ की आंखों से आंसू बहने लगे। रवीन्द्रनाथ ने कहा क्या कहते होमैं तो भगवान से कह रहा हूं कि अभी मैंने गीत गाये कहां थेअभी तो साज बिठा पाया था और विदा का क्षण आ गया। अभी तो ठोक पीटकर तंबूरा ठीक किया था सिर्फअभी मैंने गीत गाया ही कहां था। अभी तो मैंने तंबूरे की तैयारी की थीठोक पीटकर तैयार हो गया थासाज बैठ गया था। अब मैं गाने की चेष्टा करता और यह तो विदा का क्षण आ गया। और मेरे तंबूरे के ठोकने पीटने से लोगों ने समझ लिया है कि यह महाकवि हो गया है! भगवान से कह रहा हूं कि गीत का साज तैयार हो गया है और आप मुझे विदा कर रहे हो अब तो मौका आया था कि मैं गीत गाऊं। मरते रवीन्द्रनाथ कहते हैं कि अभी तो मौका आया है कि मैं गीत गाऊं!
वह यह कहे रहे थे कि अभी मौका आया था कि मैं जवान हुआ था। वह यह कह रहे हैं कि अब तो मौका आया था कि सारी तैयारी हो गयी थी और मुझे विदा कर रहे हो। बूढ़ा आदमी यह कह सकता है तो फिर वह आदमी बूढ़ा नहीं है।
अगर जवान होना है तो जिंदगी को उसको सामने से पकड़ लेना पड़ेगा। एक एक क्षण जिन्दगी भागी जा रही हैउसे मुट्ठी में पकड़ लेना पड़ेगाउसे जीने की पूरी चेष्टा करनी पड़ेगी। और जी केवल वे ही सकते हैं जो उसमें रस का दर्शन करते हैं। और वहां दोनों चीजें है जिन्दगी के रास्ते परकांटे भी हैं और फूल भी। बूढ़ा होना हो वे कांटों की गिनती कर लें। जिन्हें जवान होना हो वे फूल को गिन लें।
और मैं कहता हूं कि करोड़ कांटे भी फूल की एक पंखुड़ी के मुकाबले कम हैं। एक गुलाब की छोटीसी पंखुड़ी इतना बड़ा मिरेकल हैइतना बड़ा चमत्कार है कि करोड़ों कांटे इकट्ठे कर लोउससे और कुछ सिद्ध नहीं होता उससे सिर्फ इतना ही सिद्ध होता है कि बड़ी अदभुत है यह दुनिया। जहां इतने कांटे हैंवहां मखमल जैसा गुलाब का फूल पैदा हो सका है। उससे सिर्फ इतना सिद्ध होता है और कुछ भी सिद्ध नहीं होता। लेकिन यह देखने कि दृष्टि पर निर्भर है कि हम कैसे देखते हैं।
पहली बातजिन्दगी पर ध्यान चाहिए। मौत पर नहीं। तो आदमी जवान से जवान होता चला जाता है। बुढ़ापे के अंतिम क्षण तक मौत द्वार पर भी खड़ी हो तो भी आदमी वैसा ही जवान होता है।
दूसरी बातजो आदमी जीवन में सुंदर को देखता हैजो आदमी जवान हैवह आदमी असुंदर को मिटाने के लिए लड़ता भी है। जवानी फिर देखती नहींजवानी लड़ती भी है। जवानी स्पेक्टेटर हैजवानी तमाशबीन नहीं है कि तमाशा देख रहे हैं खड़े होकर।
जवानी का मतलब है जीनातमाशगीरी नहीं। जवानी का मतलब है सृजन। जवानी का मतलब है सम्मिलित होनापार्टिसिपेशन।
दूसरा सूत्र है।
रास्ते के किनारे खड़े होकर अगर जवानी की यात्रा को देखते हो, तो तुम तमाशबीन होतुम जवान नहीं होएक निष्क्रिय देखने वाला। निष्क्रिय देखने वाला आदमी जवान नहीं हो सकता। जवान सम्मिलित होता है जीवन में। और जिस आदमी को सौंन्दर्य से प्रेम हैजिस आदमी को जीवन का आल्हाद हैवह जीवन को बनाने के लिए श्रम करता हैसुन्दर बनाने के लिए श्रम करता है। वह जीवन की कुरूपता से लड़ता हैवह जीवन को कुरूप करने वालों के खिलाफ विद्रोह करता है। कितनी कुरूपता है समाज में और जिन्दगी में ?
अगर तुम्हें प्रेम है सौंदर्य से तो सौंदर्य को पैदा करोक्रियेटकरोजिन्दगी को सुंदर बनाओ। आनंद की उपलब्धि और आनंद की आकांक्षा और अनुभूति को बिखराओ। फूलों को चाहते हो तो फूलों को पैदा करने की चेष्टा में संलग्र हो जाओ। जैसा तुम चाहते हो जिन्दगी को वैसी बनाओ।
जवानी मांग करती है कि तुम कुछ करोखड़े होकर देखते मत रहो।
हिन्दुस्तान की जवानी तमाशबीन है। हम ऐसे ही देखते रहते हैं खड़े होकरजैसे कोई जुलूस जा रहा है। वैसे रुके हैंदेख रहे हैंकुछ भी हो रहा है! शोषण हो रहा हैजवान खड़ा हुआ देख रहा है! बेवकूफियां हो रही हैंजवान खड़ा देख रहा है! बुद्धिहीन लोग देश को नेतृत्व दे रहे हैंजवान खड़ा देख रहा है। जड़ता धर्मगुरु बनकर बैठी हैजवान खड़ा हुआ देख रहा है! सारे मुल्क के हितों को नष्ट किया जा रहा हैंजवान खड़ा हुआ देख रहा है! यह कैसी जवानी है ?
कुरूपता से लड़ना पड़ेगाअसौंदर्य से लड़ना पड़ेगाशोषण से लड़ना पड़ेगाजिन्दगी को विकृत करने वाले तत्वों से लड़ना पड़ेगा। जो आदमी जवान होता हैवह सागर की लहरों और तूफानों में जीता हैफिर आकाश में उसकी उड़ान होनी शुरू होती है। लेकिन लड़ोगे किससे  तुम व्यक्तिगत लड़ाई ही नहीं हैं यहसामूहिक लड़ाई की बात है। और बिना फाइट केबिना लड़ाई केजवानी निखरती नहीं। जवानी सदा लड़ाई के बिना निखरती नहीं। जवानी सदा लड़ती है और निखरती हैजितनी लड़ती हैउतनी निखरती है। सुंदर के लिएसत्य के लिए जवानी जितनी लड़ती हैउतनी निखरती है। लेकिन क्या लड़ोगे?
तुम्हारे पिता आ जायेंगेतुम्हारी गर्दन में रस्सी डालकर कहेंगेइस लड़की से विवाह करो और घोड़े पर बैठ जाओ! तुम जवान होऔर तुम्हारे बाप लड़की के पिता से जाकर कहेंगे कि पाँच लाख रुपये लेंगे और तुम मजे से मन में गिनती करोगे कि पाँच लाख में चरपहिया खरीदें कि क्या करेंतुम्हें क्या लगता है कि तुम जवान होऐसी जवानी दो कौड़ी की जवानी है।
जिस लड़की को तुमने कभी चाहा नहींजिस लड़की को तुमने कभी प्रेम नहीं कियाजिस लड़की को तुमने कभी छुआ नहींउस लड़की से विवाह करने के लिए तुम पैसे के लिए राजी हो रहे होसमाज की व्यवस्था के लिए राजी हो रहे होतो तुम जवान नहीं हो। तुम्हारी जिन्दगी में कभी भी वे फूल नहीं खिलेंगेजो युवा मस्तिष्क छूता है। तुम युवा हो ही नहींतुम एक मिट्टी के लौदें होजिसको कहीं भी सरकाया जा रहा होकहीं पर भी रख लिया जा रहा हो। कुछ भी नहीं तुम्हारे मन मेंन संदेह हैन जिज्ञासा हैन संघर्ष हैन पूछ हैन इन्‍क्वायरी है कि यह क्या हो रहा है! कुछ भी हो रहा हैहम देख रहे हैं खड़े होकर! नहींऐसे जवानी नहीं पैदा होती है।
हम जिसके लिए लड़ते हैंअंततः वही हम हो जाते हैं। लड़ो सुन्दर के लिए और तुम सुन्दर हो जाओगे। लड़ो सत्य के लिए और तुम सत्य हो जाओगे। लड़ो श्रेष्ठ के लिए तुम श्रेष्ठ हो जाओगे। और अगर नहीं लड़ना है तो मरोसड़ो तुमखड़ेखड़े सडोगे और मर जाओगे और कुछ भी नहीं होओगे।
जिंदगी संघर्ष है और संघर्ष से ही पैदा होती है जवानी। जैसा हम संघर्ष करते हैंवैसे ही हो जाते हैं। हिन्दुस्तान में कोई लड़ाई नहीं हैकोई फाइट नहीं है! सब कुछ हो रहा हैअजीब हो रहा है। हम सब शांति से देख रहे हैसब हो रहा है और होने दे रहे हैं! अगर हिन्दुस्तान की जवानी खड़ी हो जायतो हिन्दुस्तान में फिर ये सब नासमझियां नहीं हो सकती हैंजो हो रही हैं। एक आवाज में टूट जायेंगी। क्योंकि जवान नहीं है तो कुछ भी हो रहा है। मैं यह दूसरी बात कहता हूं। लड़ाई के मौके खोजना सत्य के लिएईमानदारी के लिए न कि स्वार्थ एवं असत्य के लिए।
अगर अभी न लड़ सकोगे तो बुढ़ापे में कभी नहीं लड़ सकोगे। अभी तो मौका है कि ताकत हैअभी मौका है कि शक्ति हैअभी मौका है कि अनुभव ने तुम्हें बेईमान नहीं बनाया है। अभी तुम निर्दोष होअभी तुम लड़ सकते होअभी तुम्हारे भीतर आवाज उठ सकती है कि यह गलत है। जैसेजैसे उम्र बढ़ेगीअनुभव बढ़ेगा चालाकी बढ़ेगी। अनुभव से ज्ञान नहीं बढ़ता हैसिर्फ कनिंगनेस बढ़ती हैचालाकी बढ़ती है। अनुभवी आदमी चालाक हो जाता हैउसकी लड़ाई कमजोर हो जाती हैवह अपना हित देखने लगता है। हमें क्या मतलब हैअपनी फिक्र करोइतनी बड़ी दुनिया के झंझट में मत पड़ो। जवान आदमी जूझ सकता हैअभी उसे कुछ पता नहीं। अभी उसे अनुभव नहीं है चालाकियों का। इसके पहले कि चालाकियों में तुम दीक्षित हो जाओ और तुम्हारे उपकुलपति और तुम्हारे शिक्षक और तुम्हारे मांबाप दीक्षांत समारोह में तुम्हें चालाकियों के सर्टिफिकेट दे देंउसके पहले लड़ना। शायद लडाई तुम्हारी जारी रहेतो तुम चालाकियों में नहींजीवन के अनुभवों में दीक्षित हो जाओ। और फिर भी अगर शायद लड़ाई तुम्हारी जारी रहेतो वह जो आतमा भीतर छिपी है वह निखर जायेवह प्रकट हो जाये उसके दर्शन तुम्हें हो जाये और जिस दिन आदमी अपने भीतर छिपे हुए का पूरा अनुभव करता हैउसी दिन पूरे अर्थों में जीवित होता है।
और मैं कहता हूं कि जो आदमी एक क्षण को भी पूरे अर्थों में जीवन का रस जान लेता हैउसकी फिर कोई मृत्यु कभी नहीं होती। वह अमृत से संबंधित हो जाता है।
युवा होना अमृत से संबंधित होने का मार्ग है। युवा होना आत्मा की खोज है। युवा होना परमात्मा के मंदिर पर प्रार्थना है।
असल में मनुष्‍य की आत्‍मा ही तब पैदा होती है, जब कोई आदमी नोनहीं कहने की हिम्‍मत जुटा लेता है। जब कोई कह सकता है, नहीं, चाहे दांव पर पूरी जिंदगी लग जाती हो। और जब एक बार आदमी नहीं, कहना शुरू कर दे, ‘नहींकहना सीख ले, तब पहली दफा उसके भीतर इस नहींकहने के कारण, ‘डिनायलके कारण व्‍यक्‍ति का जन्‍म शुरू होता है। यह की जो रेखा है, उसको व्‍यक्‍ति बनाती है। हांकी रेखा उसको समूह का अंग बना देती है। इसलिए समूह सदा आज्ञाकारिता पर जोर देता है। बाप अपने गोबर गणेशबेटे को कहेगा कि आज्ञाकारी है। क्‍योंकि गोबर गणेश बेटे से न निकलती ही नहीं। असल में निकलने के लिए थोड़ी बुद्धि चाहिए। हां निकलने के लिए बुद्धि की कोई जरूरत नहीं है। हां तो कम्प्युटराइज्ड है, वह तो बुद्धि जितनी कम होगी, उतनी जल्‍दी निकलती है। न तो सोच विचार मांगता है। न तो तर्क मांगता है। जब न कहेंगे तो पच्‍चीस बार सोचना पड़ता है। क्‍योंकि न कहने पर बात खत्‍म नहीं होती। शुरू होती है। हां कहने पर बात खत्‍म हो जाती है। शुरू नहीं होती। बुद्धिमान बेटा होगा तो बाप को ठीक नहीं लगेगा, क्‍योंकि बुद्धिमान बेटा बहुत बार बाप को निर्बुद्धि सिद्ध कर देगा। बहुत क्षणों में बाप को ठीक नहीं लगेगा, क्‍योंकि अपने आप को भी वह निर्बुद्धि मालूम पड़ रहा है। बड़ी चोट है, अहंकार को। वह कठिनाई में डाल देगा। इसलिए हजारों साल से बाप, पीढ़ी, समाज हांकहने की आदत डलवा रहा है। उसको वह अनुशासन कहे, आज्ञाकारिता कहे और कुछ नाम दे लेकिन प्रयोजन एक है। और वह यह है कि विद्रोह नहीं होना चाहिए। बगावती चित नहीं होना चाहिए। तीसरा सूत्र है कि अगर चित्त चाहिए हो वह तो सिर्फ बगावती ही हो सकता है। अगर आत्‍मा चाहिए हो तो वह रिबैलियसही हो सकती है। अगर आत्‍मा ही न चाहिए तो बात दूसरी। कन्‍फरमिस्‍ट के पास कोई आत्‍मा नहीं होती।
यह ऐसा ही है, जैसे एक पत्‍थर पडा है, सड़क के किनारे। सड़क के किनारे पडा हुआ पत्‍थर मूर्ति नहीं बनता। मूर्ति तो तब बनता है। जब छैनी और हथौड़ी उस पर चोट करती और काटती है। जब कोई आदमी कहता है। और बगावत करता है। तो सारे प्राणों पर छैनी और हथौड़ियां पड़ने लगती है। सब तरफ से मूर्ति निखरना शुरू होती है। लेकिन जब कोई पत्‍थर कह देता है ‘’हां’’ तो छैनी हथौड़ी पैदा ही नहीं होती वहां। वह फिर पत्‍थर ही रह जाता है। सड़क के किनारे पडा हुआ। लेकिन समस्‍त सत्ताधिकारियों को चाहे वे पिता हो, चाहे मां, चाहे शिक्षक हो। चाहे बड़ा भाई हो, चाहे राजनेता हो, समस्‍त सत्ताधिकारियों को ‘’हां-हुजूर’’ की जमात चाहिए।
जीसस, बुद्ध, महावीर जैसे लोग सभी बगावती है। असल में मनुष्‍य जाति के इतिहास में जिनके नाम भी गौरव से लिये जा सकें वे सब बगावती है। युवक जब शक्ति में पहुंचें उसके पहले ही उसके व्यक्तित्व का आमूल रूपांतरण हो जाए। भीतर से वे शांत हो जाएं और उनका मस्तिष्क जीवन को बदलने की तेज आग से भर जाएजीवन को बदलने की तीव्र पीड़ा उन्हें पकड़ ले। तो जो आज युवक हैंयुवा हैंबच्चे हैंकलकल उनके हाथ में देश होगा। हम चाहें तो बीस साल में इस देश की पूरी काया पलट कर सकते हैं क्योंकि बीस साल में एक पीढ़ी बदल जाती है। बीस साल में नई पीढ़ी के हाथ में ताकत आ जाती है। युवकों ने अगर इस पर नहीं सोचा तो यह देश रोज अंधेरे से अंधेरे में उतरता चला जाएगा। इस देश के पास बचाने का और कोई उपाय नहीं है। न कोई नेता बचा सकता है इसेन कोई गुरु बचा सकता है इसेऔर न परमात्मा से की गई प्रार्थनाएं बचा सकती हैं इसे। इसे बचाया जा सकता है तो एक ही हालत मेंवह जो युवा आत्मा हैवह जो यंग माइंड हैउसका जन्म हो सके तो इस देश को हम बचा सकते हैं। दूसरा कोई रास्ता नहीं है ।।
समाप्त !
महान विचारक एवं दार्शनिक रजनीश चन्द्र जैन के लेखों से संकलित एवं मेरे द्वारा संपादित। पर ऐसा कहना गलत होगा कि ये लेख सिर्फ उनके प्रवचनों की श्रंखला है, पर मेरी दृष्टि में ये लेख एक आत्मिक एवं आध्यात्मिक रूप से जाग्रत मनुष्य की वाणी है और कोई भी जाग्रत चेतनायुक्त मनुष्य ऐसे ही वचनों को दोहराएगा। समानता वही होगी क्यों कि सत्य अलग अलग नहीं होता।
कृपया अपने तर्क एवं सवालों को बेझिझक इस नंबर पर Whatsapp कर सकते है – 9690891143 लेख पूरा पढ़ने के लिए ह्रदय से धन्यवाद। जुड़े रहिएगा जीवन के अन्य गहनतम रहस्यों को जानने एवं सच से पर्दा उठाने के लिए।

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